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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

बफर सिस्टम  (1) 


बफर सिस्टम  - 1

मैं अपना नित्य कर्म करके श्रीमती जी के समक्ष इस आशा से उपस्थित हुआ कि उनकी कृपा हो जाये तो उनके मखमली हाथों से एक प्याला गरम गरम ग्रीन टी मिल जाए । आप ग़लत समझ रहे हैं जनाब । मैं कोई पगार लेने नहीं आया था । मैं तो पुरुस्कार लेने आया था । ऐसा नहीं है कि ग्रीन टी मैं नहीं बना सकता था , लेकिन उनके हाथों की महक को मैं ग्रीन टी के साथ महसूस करना चाहता था । इसलिए मेरी ख्वाहिश रहती है कि सुबह सुबह श्रीमती जी अपने हाथों से एक कप ग्रीन टी बनाकर ला दें तो अपनी किस्मत बन जाये । 
हमारी इस फरमाइश पर अभी वो कुछ "सुभाषित" सुना पातीं कि इतने में फोन ने अपनी मधुर वाणी का संचार कर दिया । उधर से हंसमुख लाल जी की आवाज़ आई । 

एक बात बता दूं आपको कि मेरे और हंसमुख लाल जी के बीच वही रिश्ता है जो रात और दिन, दुख और सुख , हानि और लाभ का है । अब आप यह आंकलन करते रहिए कि हम दोनों में से रात कौन है और दिन कौन है । 

वो बोले : भाईसाहब, आपके पास सेठ करोडीमल के पौत्र के विवाह का निमंत्रण पत्र आया है क्या ? 
मैं : कौन से सेठ करोड़ीमल और कौन सा निमंत्रण पत्र ? 
"अरे भाईसाहब , सेठ किरोड़ीमल को आप कैसे भूल सकते हैं । वो मेरे ताऊ के लड़के के बहनोई के जंवाई के भांजे के मौसा के ससुर के साले हैं "। 

"हां हां , याद आ गया । आपका तो उनसे बड़ा नजदीकी रिश्ता है "। मैंने व्यंग्य कसा ।

"हां भाईसाहब, बहुत नजदीकी रिश्ता है । निमंत्रण पत्र के साथ काजू का एक पैकेट भी तो आया होगा । मैंने स्पेशल कहकर आपको भिजवाया था" 

मैंने उनकी मेहरबानी के लिए उनका आभार व्यक्त किया और स्वयं को इस पात्रता के लिए धन्य पाया । 
वो बोले : कब चलना है शादी में ? 
"कभी भी चले चलो । नौ बजे कैसा रहेगा "? 

वो जोर से हंसे और देर तक हंसते रहे । मैंने उनसे उनकी निर्मल हंसी का सबब पूछा तो बोले : नौ बजे तक तो सूपड़ा साफ हो जायेगा भाईसाहब । फिर आप क्या खाली प्लेट चाटने जाओगे ? ऐसा करते हैं कि सात बजे चलते हैं ।

मैं जानता था कि हंसमुख लाल जी शादी की पार्टियों के  एक्सपर्ट हैं इसलिए इस मामले में उनके अनुभव निराले हैं और हम उनसे इस संबंध में पंगा नहीं ले सकते हैं । इसलिए मैं ने सात बजे के लिए हामी भर दी । 

ठीक छः बजे वे मेरे घर आ गए । मैंने टोका  
"बात तो सात बजे चलने की हुई थी और अभी तो छः ही बजे हैं" । 
बोले : भाभी के हाथ की चाय भी तो पीकर जाऊंगा ।

मैंने उनको धन्य धन्य कहा । जो आदमी इतने बड़े सेठ की पार्टी में जा रहा हो । वह यहां पर एक कप चाय भी पीयेगा ? बाप रे बाप , कमाल हैं आप ।

मैं तैयार होने लगा और श्रीमती जी उनके लिए चाय बनाने लगीं । मैंने पूछा : एक बात तो बताओ , ये सेठ करोड़ीमल जी बचपन से ही सेठ थे या बाद में बने ? 

उन्होंने पलट कर पूछा कि क्या टाटा शुरू से ही ऐसे धन्ना  सेठ थे जैसे कि आज हैं ? फिर उन्होंने ज्ञान की बारिश करते हुए कहा कि भैया सब लोग छोटे से ही बड़े बने हैं । ये भी उनमें से एक हैं । कोई जमाने में इनके घर चूहे भूखे ही शीर्षासन करते थे । मगर आज बिल्लियां चूहे नहीं मलाई मारती हैं । 

मैंने वैसे ही पूछ लिया कि दूल्हे का नाम क्या है हालांकि मुझे तो केवल खाने से मतलब था । 
नाम तो "बिलियन" है मगर घर में सब उसे बिल्ली भैया कहते हैं। 

मुझे यह नाम बड़ा अटपटा सा लगा । आखिर पूछ ही लिया : ये नाम तो कभी सुना नहीं ? 

बोले : सेठ करोड़ीमल खानदानी आदमी हैं । उनके बाप का नाम सेठ लखमीचंद था । चाहे पास में फूटी कौड़ी भी नहीं थी पर नाम रखने में क्या जाता है । लखमीचंद नाम रखने से लक्ष्मी का अहसास तो होता है कम से कम । 
लखमीचंद के बाप का नाम हजारी लाल था । भैया , ये तो खानदानी सेठ हैं । इसलिए इनके नाम ऐसे ही होते हैं । अब चूंकि जमाना बदल गया है इसलिए अब ये लोग माडर्न नाम रखने लगे हैं । जैसे दूल्हे का नाम बिलियन उसके पिता का नाम मिलियन है । शादी के बाद जब इसको कोई पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी तब शायद उसका नाम " ट्रिलियन " रखा जाये । पर एक बात माननी पड़ेगी आपको । नाम इन्होंने संख्या वाले खानदान में से ही रखा है क्योंकि खानदानी सेठ जो हैं । खानदानी सेठों की तो बात ही कुछ और होती है । 

इतने में चाय आ गई और हंसमुख लाल जी चाय पर,टूट पड़े ।  हम लोग तैयार होकर ठीक सात बजे पार्टी में पहुंच गए । मैंने सोचा था कि सात बजे शादी में कौन आयेगा लेकिन वहां पर तो मेला लगा हुआ था ।  शायद सभी लोग यह सोचकर कि बाद में खाना बचेगा या नहीं , इसलिए पहले ही शॉट मारने के चक्कर में इतनी जल्दी आ गये । इतनी भीड़ देखकर मन प्रसन्न हो गया कि दुनिया में भोजन भट्टों की कोई कमी नहीं है । कोरोना फैलने के बावजूद इतनी भीड़ ? खाने के प्रति लोगों के इस चुंबकीय आकर्षण को देखकर हम तो निहाल हो गए ।  एक बात तो माननी पड़ेगी कि इस देश में लोग भूख से नहीं बल्कि ओवर ईटिंग से ज्यादा मरते हैं । 

बहुत शानदार व्यवस्थाऐं की थीं सेठ करोड़ीमल जी ने शादी में । जितने बड़े सेठ उतनी अधिक विनम्रता । सागर की विशालता को सार्थक कर रहे थे सेठ जी । न जाने कितनी नदियां सागर में समा जाती हैं मगर सागर शांत और स्थिर बना रहता है । इसी तरह न जाने कितने व्यवसायों से पैसा करोड़ीमल जी के पास आ रहा था मगर वे विनम्रता की प्रतिमूर्ति बने हुए थे । खानदानी सेठों का यही तो बड़प्पन होता है कि वे कभी धन दौलत से बौराते नहीं हैं । मान गये भई सेठ जी को । वृक्ष में जितने अधिक फल लगते हैं वह उतना ही अधिक झुकता है । एक मैं हूं जो ठूंठ था , हूं और रहूंगा । सरकारी अधिकारी जो ठहरा । कुर्सी की अकड़ में अमचूर की तरह । 

सबसे पहले हम दोनों ने उन्हें एक एक लिफाफा पकड़ाया । "इसकी क्या आवश्यकता है" कहकर खींसे निपोरते हुए उन्होंने वे लिफाफे ले लिये । अब हमारा द्वितीयक काम मतलब लिफाफा देना तो हो चुका था बस अब तो प्राथमिक काम मतलब खाना निबटाना बाकी रह गया था। 

हंसमुख लाल जी की आदत है कि वे खाना प्रारंभ करने से पूर्व पूरे पाण्डाल का एक चक्कर काट कर देखते हैं कि खाने में क्या क्या है । यह आदत मुझे बड़ी अच्छी लगी । इससे यह तो पता चल ही जाता है कि पूरा मीनू क्या है । नहीं तो बाद में पछताना पड़ जाता है कि हमने तो वह आइटम मिस कर दिया । हंसमुख लाल जी ने पूरे विवाह स्थल का अच्छी तरह से मौका मुआयना कर लिया था । उनके चेहरे पर उत्साह के भाव उसी तरह नजर आ रहे थे जैसे कोई योद्धा शस्त्रागार में जाकर विभिन्न शस्त्रों को देखकर खुश होता है और उस शस्त्रागार में अपनी इच्छा के अनुरूप शस्त्र देखकर उसे जो खुशी मिलती है ऐसी खुशी हंसमुखलालजी के चेहरे पर नजर आ रही थी । 

बोले : भाईसाहब, कोई जल्दी तो नहीं है ना आपको जाने की ? सेठ जी के यहां शादी है किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे के यहां नहीं । देखते नहीं कि कितना माल सजा हुआ है यहां पर । जितना ज्यादा माल उतना ज्यादा अपना काम । इसलिए आराम आराम से अपना काम निबटाएंगे दोनों भाई । सबको निबटा कर ही जायेंगे । मतलब खूब माल डकार कर जाऐंगे  । युद्ध भूमि का एक सिद्धांत है कि युद्ध भूमि में किसी को जिंदा नहीं छोड़ा जाता है । इसी तरह जब एक साथ हम  दोनों भाई भीम और अर्जुन की तरह  दुश्मन (खाना) पर टूट पड़ेंगे तो कितनी देर लगेगी मैदान मारने में ? सब कुछ सफाचट करके ही जायेंगे ।

मैंने कहा : आप तो भीम से भी श्रेष्ठ लड्डू धारी हैं प्रभु । मगर मैं अर्जुन नहीं हूं । मैं तो केवल एक छोटा सा प्यादा हूं । इसलिए हे भोजन भट्ट । आप मेरी गिनती महारथियों में ना करें ।

वो उत्साह से बोले : आज का दिन मेरे लिए विशेष है । आज तो मैं खाने के साथ ऐसा युद्ध करुंगा कि शवों के ढेर लग जायेंगे । आप तो बस शव (खाली प्लेट) गिनते जाना भाईसाहब । भीम ने तो केवल सौ कौरव मारे थे । मैं तो उससे भी श्रेष्ठ हूं । आप ही गिनकर बताना कि अंतिम संख्या क्या थी ? मैंने कितने योद्धाओं का आहार किया ? मतलब मैंने कितने आइटम खाये ? 
शेष अगले अंक में 

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6 Comments

Pallavi

22-Sep-2022 09:31 PM

Beautiful

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Abeer

22-Sep-2022 10:57 AM

Nice post

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Barsha🖤👑

21-Sep-2022 05:22 PM

Very nice

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